अथर्ववेद

Cow according to Vedas and Purana


अथर्ववेद, काण्ड ९, सूक्त ७ 

(ऋषि: ब्रह्मा । देवता गौ:।)

 

 

 

मंत्र १-९

प्रजापतिश्च परमेष्ठी च शृङ्गे इन्द्र: शिरो अग्निर्ललाटं यम: कृकाटम् ॥१॥

सोमो राजा मस्तिष्को द्यौरुत्तरहनु: पृथिव्यधरहनु:॥२॥

विद्युज्जिह्वा मरुतो दंता रेवतीर्ग्रीवा: कृत्तिका स्कन्धा धर्मो वह:॥३॥

मंत्र १०-१२

धाता च सविता चाष्ठीवंतौ जङ्घा गन्धर्वा अप्सरस: कुष्ठिका अदिति: शफा:॥१०॥

चेतो हृदयं यकृन्मेधा व्रतं पुरीतत्॥११॥

क्षुत् कुक्षिरिरा वनिष्ठु: पर्वता: प्लाशय:॥१२॥

मंत्र १३-२०

 क्रोधो वृक्कौ मन्युराण्डौ प्रजा शेप:॥१३॥

नदी सूत्री वर्षस्य पतय स्तना स्तनयित्नुरूध:॥१४॥

विश्वव्यचाश्चर्मौषधयो लोमानि नक्षत्राणि रूपम् ॥१५॥

मंत्र २१-२२

प्रत्यङ् तिष्ठन् धातोदङ् तिष्ठन् सविता॥२१॥

तृणानि प्राप्त: सोमो राजा॥२२॥

मंत्र २३-२६

मित्र ईक्षमाण आवृत्त आनन्द:॥२३॥

युज्यमानो वैश्वदेवो युक्त: प्रजापतिर्विमुक्त: सर्वम्॥२४॥

एतद् वै विश्वरूपं सर्वरूपं गोरूपम्॥२५॥

उपैनं विश्वरूपा: सर्वरूपा: पशवस्तिष्ठन्‍ति य एवं वेद॥२६॥

मंत्र की व्याख्या - १

इस सूक्त में गौ का तथा बैल का विश्वरूप बताया गया हैं। भगवद् गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने अपने विश्वरूप का वर्णन किया हैं, गौ के भी उसी प्रकार के विश्वरूप का इस सूक्त में वर्णन किया हैं। संस्कृत के प्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वान् ग्रिफिथ महोदय कहते हैं कि इस सूक्त में आदर्श बैल और गाय की प्रशंसा की गई है।

मंत्र की व्याख्या - २

गौ एक निरा दूध देने वाला पशु ही नहीं है, प्रत्युत वह अपने कुटुम्ब का हकदार है, या यों कहिये कि मालिक है और हम उसके परिवार के लोग हैं- यह भाव सदा मन में जीवित और जाग्रत रहना चाहिये।