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श्री अलखपुरीजी महान सिद्ध संत हैं। वे सत्य लोक (परम सत्य यथार्थ सर्वोच्च परमात्म लोक) के ऋषियों में से एक हैं जो संसार के संरक्षण का कार्य हजारों वर्षों से स्थूल या सूक्ष्म रुप में कर रहे हैं। उनका उदगम किसी को ज्ञात नहीं, वे संसार से अतीत हैं तथा समय से अप्रभावित हैं।
पूर्व कथा के अनुसार, श्री अलखपुरीजी हिमालयन क्षेत्र में केदारनाथ तथा बद्रीनाथ जैसे तीर्थ स्थानों में सत्ययुग के समय से ही अपने भक्त संतों के साथ संसार का रक्षण करने हेतु निवास कर रहे हैं। वे सूक्ष्मशरीर धारी तथा सर्वगामी हैं। अपितु वे स्थूल शरीर के द्वारा दुर्लभतम ही प्रकट होते हैं परंतु उनकी उपस्थिति उनके आध्यात्मिक भक्त इन स्थानों पर अनुभूत करते हैं।
पवित्र पुराणों में श्री अलखपुरीजी के अनेक उधारण आते हैं। शिव पुराण में उन्हें महान सिद्ध संत दैवीय अवतार के रुप में (पृथ्वी के निर्माण के समय) माना गया था। महाभारत में पांडवों को स्वर्ग की यात्रा से पूर्व उनकी आशीष प्राप्ति का आदेश मिला था। उनकी आध्यात्मिक महत्ता का अन्य प्रमाण यह है कि पवित्र नदी अलकनन्दा का नाम उनके नाम पर रखा गया हैं। यह नदी जिसे विष्णु पदी गंगा (भगवान विष्णू के चरणों से निकली हुई) भी कहते हैं सतोपंथ (सत्य का मार्ग) नामक झील से मिलती है। यह झील एक त्रिभुजाकार, स्वच्छ झील है जिसे दिव्य त्रिवेणी भी कहते हैं। भगवान् विष्णु, शिव तथा ब्रह्मा इसके तीनों कोणों में तपस्या करते हैं ऐसा विश्वास किया जाता है।

 

स्कन्ध पुराण के अनुसार, एकादशी के दिन भगवान ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव इसमें स्नान करते हैं।

अलकनन्दा - भागीरथी संगम

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