विश्वगुरु परमहंस श्री स्वामी महेश्वरानंदपुरी जी ने वर्ष २०१७ के अगस्त माह का अंतिम सप्ताह महाप्रभु दीप आश्रम स्त्रिल्की, चेक रीपब्लिक में व्यतीत किया ।
 
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इस के दौरान कई कार्यक्रमो का आयोजन किया गया, यथा यज्ञ, व्याख्यान, आसनो का अभ्यास, ध्यान, योग शिक्षक प्रशिक्षण गतिविधियाँ, नोनिहालो की सांस्कृतिक गतिविधियाँ, भगवान्‌ श्री कृष्ण के जन्मदिवस कृष्णजन्म अ‍ष्टमी का आयोजन, गणेश चतुर्थी का आयोजन (श्री गणेश का जन्मोत्सव), हिन्दुधर्मसम्राट श्री माधवानन्दपुरी जी का जन्मोत्सव, तथा हमारे प्रात: स्मरणीय गुरुदेव विश्वगुरु परमहंस श्री स्वामी महेश्वरानंदपुरी जी का भी अवतारदिवस उसी दौरान मनाये गये ।
 
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इस ग्रीष्मकालीन अनुष्ठान मे विश्वगुरुजी ने अपने प्रवचन के दौरान कई गम्भीर विषयो पर चर्चा की, परंतु उनमे से भी दो विषय पर अधिक बल दिया - दर्शन और क्रियायोग।
 
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" दर्शन के द्वारा ईश्वर का साक्षात्कार होता है," विश्वगुरुजी ने कहा की -" दर्शन, योग का उच्चस्तरीय विषय है ।"  " प्रत्येक धर्म में धार्मिक यात्रा के सिद्धान्त होते है, और इस यात्रा का लक्ष्य यह है की यात्री उस यात्रा की दिव्यता को अनुभव कर सकता है, जो दिव्यता उस धार्मिक स्थान में है। अत: दर्शन से उस दिव्यता का भी अनुभव किया जो आलौकिक है ।"
 
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स्वार्थ युक्त तथा स्वार्थ रहित कर्म बहुत से हो सकते है ; उदाहरण स्वरुप , जब हम बाह्य पर्यावरण या प्रकृति मे कुछ अच्छा करते है , और उसका कुछ पुरस्कार नही चाहते है । स्वार्थ रहित क्रियाओ के अनेको लाभ होते है ।
 
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किंतु जब हम कोई निष्काम कर्म [स्वार्थ रहित ] करते है , और उसमे पुरस्कार की आशा करते है, तब वह पुण्य कर्म अपनी महत्ता को खो देता है , और वह पुण्य कर्म सकाम कर्म मे परिवर्तित हो जाता है ।
 
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सकाम कर्म धन के निमित नौकरी करने जैसा है , और वह भी सकाम कर्म आंशिक रुप से निष्काम कर्म मे तब परिवर्तित हो जाता है जब वह प्रेम से किया जाये ।
 
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हिंदुधर्म सम्राट श्री स्वामी माधवानंदपुरी जी महाराज हमेशा कहा करते थे , कि "योगाग्नि कर्म दग्धानि" जिसका तात्पर्य यह है कि " बुरे कर्मो का नाश या दहन निरंतर यौगिक क्रिया करते रह्ने से योगाग्नि द्वारा सम्भव है ।"
 
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भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता मे कहते है कि " योग: कर्मसु कौशलम् " निरन्तर योगाभ्यास से क्रियाओ मे कुशलता आती है । क्रिया को शारीरिक रुप से व मानसिक रुप से भी किया जाता है । मानसिक क्रिया अभ्यासकर्ता को मोक्ष तक ले जाती है , जैसा गुरुजी कहते थे "योगाग्नि कर्म दग्धानि ।"
 
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इस तरह चार सप्ताह तक प्रतिदिन चलने वाला पूजा व यज्ञ अनुष्ठान गणेश चतुर्थी { गणेश जन्मोत्सव } के पश्चात् पूर्ण हुआ ।
यज्ञशाला - इस आश्रम में भी वैदिक सिद्धांतो के अनुरूप सुसज्जित यज्ञशाला है, जहा यज्ञादि अग्निहोत्रादि क्रियाए की जाती है।