पद राग लूरिला हिंडोल नं॰ १०५

सत गुरु स्वामी जी बिना दर्शन दासी दु:ख पावे।
आवे रे हिलोला नैन बरसावे।
नैन बरसावे सा ऐसा लोर आवे॥टेर॥

बिरह की ज्वाला जागी उमावो आवे, तन मन प्राण सारो घबरावे।
सैन करुं तो नींद नहीं आवे॥१॥

बिन जल मीन को मरण हो जावे, तडफ तडफ ज्यांरो जीव दु:ख पावे।
बाहर निकालिया स्वासा नहीं लेवे॥२॥

पिहु पिहु पपैयो हमेशा चिरलावे, सागर भरीयो नहीं भावे।
अधर बूंद बिना वो नहीं पीवे॥३॥

पति बिना सती ने सिणगार नहीं सोवे, होय मन मस्त दिवानी होय जावे।
छोड जगत लारे जल जावे॥४॥

श्री पूज्य नारायण श्री देवपुरी सा, सुर नर मुनीजन ध्यान धरे सा।
श्री दीप कहे सूरत श्याम मेरे मन भावे॥५॥