पद राग काफी न॰ ८

ये तुम से कैसे निभेगी वाला, हम लोगन की प्रीत॥टेर॥

हम परदेशी यहां के नाहीं, विरत्त सरल अतीत॥१॥

अहं ब्रह्मचारी धर्म हमारा, तुमारी खोटी नीत॥२॥

गगन मण्डल में आसन मेरो, तुम गावत गलियन में गीत॥३॥

अटल नौकरी करनी होगी, समझ तुम्हारी मींत॥४॥

हार सिंगार से मैं नहीं रीझू तुम हो अंधी भीत॥५॥

श्री स्वामी दीप कहे सुन सजनी, ऐसी हमारी रीत॥६॥