पद राग पूर्वोत्तक रसिया न॰ ७

आज सखी घूंघट पट खोलो।
मन भरके सत गुरुजी से बोलो॥टेर॥

तेरा वर अन्दर महल विराजे।
काहे को बन परवत डोलो॥१॥

ऊंची अटारी में सहज श्याम की।
चन्द्र सूर बिन अखण्ड उजालो॥२॥

होय निस कपट लपट पीव के अंग।
लोक लाज को मिटादे ओलो॥३॥

अमृत आनन्द का रंग बरसे।
वरण सकू नही आवे अण तोलो॥४॥

श्री देवपुरी ब्रह्म है पीव अनादी।
श्री स्वामी दीप कहे मन भर के खेलो॥५॥