ध्यान मूलं गुरु मूर्ति पूजा मूलं गुरु पदम्।
मंत्र मूलं गुरु वाक्यं मोक्ष मूलं गुरु कृपा॥१॥
वन्दे अहं सच्चिदानन्दं भावातीतं जगदगुरुम्।
नित्यं पूर्ण निराकारं स्वात्मसंस्थितम॥२॥
अखण्डं मण्डलाकारं व्याप्त ये न चराचरम।
तत्पतं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नम:॥३॥
चैतन्यं शाश्वतं शांतं व्योमातीतं निरंजनम्
नादविन्दुकलातीतं तस्मै श्री गुरवे नम:॥४॥
गणाधीशं गणपति गणनाथ् गणेश्वरम्।
सर्वेन्द्रियगुणप्रेरक हंसो सोहं चिंतयेत्॥५॥
सच्चिदानन्दरुपाय व्यापिने परमात्मने।
नम: श्री गुरुदेवाय प्रकाशानन-मूर्तये॥६॥
दोहा
श्री तत्वदर्शी गुरुदेव को अनुभव अपरम्पार।
धन्य जिज्ञासु जो लखे होत सिन्धु भव पार॥
सतगुरु सम तिहूँ लोक में नजर न आवे और।
स्वर्ग लोक पाताल में हम देख्या सर्व ढंढोर॥
शूरवीर से अधिक है साधु को संग्राम।
काम क्रोध मद लोभ मोह खोद उठाये नाम॥
 
॥दोहा छन्द॥
होट जिह्वा हाले नहीं बिना जप्या जप होय।
अजपा जिसको क्या जपे जानत बिरला कोय॥
मैं मेरा निज आप हूँ तत्वमसि निरमोय।
करता हूँ मैं वन्दना मेरी मुझ को होय॥