पद राग गजल नं॰ १३५

जागो जगो रे भारत के देवी देवताजी॥टेर॥

कैसी भूल पडी भारत में, जीवन खोय रहे।
व्यर्थ में फंस गये, पोप जाल पाखण्ड में भ्रमना भूल में जी॥१॥

जप कर बज्या पुत्र जनावे, जप कर धन कुबेर बनावे।
जप कर ताव रोग मिटावे, माल ठग खावनाजी॥२॥

पतडा पढे भेद ना पावे, गोचर गृह कह बतलावे।
डाले नव गृह का जाल कपट के फन्द में जी॥३॥

झूठा पापी पिड सरावे, मुरदा भूत प्रेत बतलावे।
बहोत सा धन माल खा जावे, कराकर पिंड पर दान जी॥४॥

थाने बरत उपवास करावे, पेठया मुप्त आप घसकावे।
फिरके कहानी कथा सुणावे, ज्या में लाव न साव जी॥५॥

सोचो जरा शरम नहीं आवे, मरते समय दान करवावे।
कहे ये तो जीव राज के साथ लेय अपने घर जाय जी॥६॥

स्वामी दीप कहे उपदेशा, कोई करो न राग द्वेषा।
यह वेदांत शास्त्र सार सो हम केवताजी॥७॥