पद राग प्रभाति बधावा नं॰ १३०

साधो मन भर सत गुरु भेटिया।
वांका रलिया समुद्र में सौर रे॥टेर॥

साधो सुख सागर छोला चढी,
दिल में आय रया घणा हिलोलरे॥१॥

साधो मान सरवर मोती घणा,
वहा पर हंसला करे किलौल रे॥२॥

साधो अथंग दरियावा विच झूलणा,
संतजन मल-मल धोय लीना मेल रे॥३॥

साधो अनुभव लैहरा हो रही,
मुख से कही न सुणी जाय रे॥४॥

श्री देवपुरी सायब ब्रह्म है,
श्री स्वामी दीप गुण गाय रे॥५॥