पद राग केदार दीपचन्दी ताल नं॰ १२७

हो गुरुदेव सम दातार जग में हुओ न कोई होय रे।
शरण लेवो चरण की, जन अमर कर दे तोय अमर रे॥टेर॥

शेष ब्रह्म शारदा नारद मुनिजन जोय रे।
शम्भु को बरदान दीनो ध्यान अविचल होय रे॥१॥

श्री विष्णु को बरदान दीनो शुद्व निरमल होय रे।
सम रुप देखे आत्मा नहीं करे किण सू द्रोय रे॥२॥

अवतार योगी सिद्व को, वरदान दे निरमोय रे।
पापिया को त्यारिया है वेद शाखा जोय रे॥३॥

सत गुरु स्वामी अंतर्यामी, दूसरो नहीं कोय रे।
श्री स्वामी दीप साचा सतगुरु सा, वाला लागे मोय रे॥४॥