पद राग बारा हंस नं॰ ११६

ऐसा मेरा सतगुरु साहेब, अजर अमर रे।
अजर अमर, बांके तख्त सदर रे॥टेर॥

रंग न रुप वांके, छाया न धूप वांके।
निर्भय निसंक वांके, कछु नहीं डर रे॥१॥

नहीं वहा पवना पाणी, नहीं है वहा जहा वेद वाणी।
अचल अनूप धाम, धरीया न अधर रे॥२॥

जमी असमान मांही, उसी के मकान नाहीं।
प्रगट निशान नाहीं, कहूँ क्या खबर रे॥३॥

अमर देश का सतगुरु वासी, परमार्थ को जग में आसी।
श्री स्वामी दीप कहे मेरी चरणों में नजर रे॥४॥