पद राग पूर्वोत्त रसिया नं॰ १११

चाल सखी ये सतगुरु दरसण को।
झड लागो ये भजन सिमरण को॥टेर॥

इला ये पिंगला सुषमण चाले,
अधर गगन मांही घटा टोप घन को॥१॥

उलट पुलट बादल झुक आये,
दामण दमक स्वरुप गगन को॥२॥

हीरा, पन्ना, लाल, माल संतन को,
कीमत नहीं जाणे मूंगा मोतियन को॥३॥

श्री सत गुरु सायब देवपुरी सा,
स्वामी हो दीप दास चरनन को॥४॥