पद राग खमाच नं॰ ९७

सैलानी ऐसी देखी रे मैं, अजब घणी।
अजब घणी रे निर्भय मौज बणी॥टेर॥

पग बिन पंथ मग बिन मारग, नहीं कोई डोर तणी।
हद बेहद के पार बिराजे ऐसा है रामधणी॥१॥

अगम अपार पार नहीं उनका, नहीं बणी है केणी।
वेद पुरान कर्म नहीं पहुचे नहीं पहुचे करणी॥२॥

सत गुरु स्वामी अंतरयामी, सब का मुकटमणी।
श्री दीप कहे चरणों बलिहारीए, मन में हर्ष घणी॥३॥