पद राग ठुमरी ललिता नं॰ ९३

गुरु भक्त जगत में नर है।
उसको किसका डर है जी॥टेर॥

गुरु भक्त थे रोहित तारा, हरीशचंद्र राजा अधिकारा।
ज्यारा होरया नाम अमर है॥१॥

गुरु सेवा में मोरध्वज राजा, त्याग दीवी सब जग की लाजा।
मनधारी जबर सबर है॥२॥

ध्रुव बालक गुरु आज्ञाधारी अचल धाम उनकी कर डारी।
किया काल को सर है॥३॥

गुरु भक्त थे जनक विदेही, श्री कृष्ण और रामचन्द्र ही।
बन गये आप ईश्वर है॥४॥

हरी अज ब्रह्मा शंकर हो ये सब सत गुरु के चाकर है।
स्वामी दीप की ये ही विनती हम पर राखो भली नजर है॥५॥