पद राग पारवी नं॰ ९२

गुरु देव दरशन धन्य हो।
चैतन्य आनन्द घन हो॥टेर॥

शेष महेश करे गुरु सेवा, मुझ को शरण रखो गुरु देवा।
तन मन धन अर्पण हो॥१॥

ऋषी मुनी सुमरे अवतारा, वेद थकित नहीं पावत पारा।
मैं कैसे करु कथन हो॥२॥

जप तप योग नहीं बन आवे, करुणानिधी दया करवावे।
मेरी बारम्बार नमन हो॥३॥

सत गुरु दरशन तीरथ सारा, जो जन पावे भाग्य सितारा।
हरी भव भंजन भगवन हो॥४॥

सत गुरु से ये मेरी वन्दना, काटो काल भव कर्म फन्दना।
मुझ पर रहो प्रसन्न हो॥५॥
श्री सतगुरु सायब देवपुरीसा, प्रभु धरम हेत अवतार धरेसा।
श्री स्वामी दीप आपके शरण हो॥६॥