पद राग रसिया नं॰ ८३

सत गुरु स्वामी मेरे मुकुट मणी है।
हंस उबारयो मेरा श्याम घणी है॥टेर॥

भव सागर में बहुत दु:ख पायो।
लख चौरासी में भुगती घणी है॥१॥

नाना कष्ट सहन हम कीना।
हाय हाय मम बीती घणी है॥२॥

गर्भ गरक में दु:खी हम रहिये।
घोर नरक नहीं कहने में बणी है॥३॥

एक पलक में नहीं बिसराऊं।
श्री दीप कहे मम कृपा घणी है॥४॥