पद राग बधावा तर्ज दीपचन्दी नं॰ ८१

सूरत लागे सुहावनी ये हेली।
सत गुरु साहेब श्याम॥टेर॥

नींका निरख्या नाथनेस जी, पीव परस होय भेली।
रंग महल में सहज सुरंगी, हिल मिल हरष रमेली॥१॥

अमर पती परब्रह्म भेटिया, निर्भय नेहचल रहली।
पतिव्रता परिपूर्ण रीझे, आनन्द खूब करेली॥२॥

अमर सुहाग भाग बड भागण, हाजर रही सहेली।
काल कर्म तो व्यापे नाहीं, दुर्मति दूर करेली॥३॥

सदा सुरंगो सासरो जी, ना कोई जनम धरेली।
स्वामी दीप सत समझावे, गुरु कृपा से निभेली॥४॥