पद राग बधावा नं॰ ८०

हो सइयां सतगुरु कामनगारा ये।
मोहनी मंत्र सुनावियो, तन मन मोह लिया सारा ये॥टेर॥

सत गुरु श्यामा सुहावना, मम प्राण आधारा ये।
और पुरुष हमें नजर न आवे, ऐसा ही दीदारा ये॥१॥

सूरत सांवरी मोहनी मूरत, ऐसा पर उपकारा ये।
दर्शन कर दिल हरस्यो, नीका जोया सराया ये॥२॥

परसत ही दुरमत गई, सब दूर विकारा ये।
चेतन मिल सचेत हुवा, जग भूल निवारा ये॥३॥

श्री देवपुरी ब्रह्म आद अनादि, दूजा नहीं है लींगारा ये।
श्री स्वामी दीप चरण रा सेवक, जाऊँ बलिहारा ये॥४॥