पद राग बधावा नं॰ ६६

हो सजन सतगुरु देश दिवाना ये,
जन्म मरण की कल्पना नाहीं, ऐसो देश दिवाना ये॥टेर॥

माया रहित अतीत गोसांई, सदा ही थिर थाना ये।
शुद्व स्वरुप भूप भगवाना, निर्गुण न्यारा ही रहाना ये॥१॥

निर्विकार निश्चल अविनाशी, अपरम रुप अमाना ये।
कुदरत सत्य स्वरुप का, ऐसा पुरुष पुराना ये॥२॥

अचल अडोल अबोल अनादि, ऐसा बे गम जाना ये।
नहीं वहां शब्द शून्य नहीं वहां पर, चेतन जड नहीं कहाना ये॥३॥

श्री देवपुरी ब्रह्म भूप है, ऐसे अगम पहिचाना ये।
स्वामी दीप कहे सत गुरु महिमा, ऐसा कुदरत गाना ये॥४॥