पद राग दीपचन्दी ताल खमाच नं॰ ६३

दीवानी सतगुरु नाम की है, बाली बाली।
नजर आवे कोई और॥टेर॥

लवलीन रहूँ दिन रात सदा ही जैसे मद पीके मतवाली।
पार ब्रह्म से लागी प्रीती बेहद लागी है ताली॥१॥

अधर सून्य में सेज श्याम की, अधर पधर ठहराली।
निर्भय सेल करी सुख मांही, सेहजां सेहज मांही माली॥२॥

सदर देश में सदर सिंहासन, तहां पर सूरत समाली।
एक अचम्भो ऐसो आवे, अजब खेल है ख्याली॥३॥

सून्य शहर में महल सुरंगो, वहां सतगुरु अपनी आप मिलाली।
स्वामी दीप कहे समझो भाई संतों, प्रीति पूर्व की पाली॥४॥