पद राग गजल रेखता नं॰ ४९

आपको बिसरा दिया सितम गजब की बात है॥टेर॥

जैसे स्वप्न में भूप को, आप मन स्वप्ना हुवा।
मान बैठा रंक पर वह भूप ही परभात है॥१॥

दरपण में मुख्न देख बालक, दूसरा वो मानता।
भ्रम होने की वजह से, ग्रहण को अकुलात है॥२॥

कूकर जैसे काच के, महलों में जाकर भोंकता।
मानता है और ही तडफ कर मर जाता है॥३॥

सिंह देखे कूप में, मुख आपनो ही भूल के।
अहं मम अभिमान करके, कूप में पड जात है॥४॥

अपने गुरुदेव से सत्य रुप को निश्चय करो।
जग कौन है, मैं कौन हूँ प्रभु ईश कहाँ रहात है॥५॥

समुद्र घट के जलों में, भेद तो है भी नहीं।
श्री दीप स्वामी कहत है, गुरु एक ब्रह्म तदात है॥६॥