पद राग मल्हार नं॰ ४७

गुरां सा म्हारी सायल बेग सुणीज्यो।
चवदा लोक में देवन दूजो, सतगुरु चरण पूजीजे जी॥टेर॥

चरण कमल की रज में चाटू गद गद नेण भरीजे।
पूजा विधि कछु नहीं जाणु, किस विधि सत गुरु रीजे जी॥१॥

औगुण बहुत माफ कर दीज्यो, मेरा हर औगुण गुण दीज्यो।
मारो भावे तारो अब मरजी आपकी, सहज तले को किंजोजी॥२॥

दामन गीर आप रो भगवन, ताबेदार राखीजो।
भरीया अथाह नोर भय भारी, वेग इसारो कीजो जी॥३॥

कर कविता पद प्रगट गाऊं, महर भगत पर कीज्यो जी।
श्री स्वामी दीप यह अरज गुजारी, स्वामी बिना मन नहीं धीजे जी॥४॥