पद राग सारंग अथवा धनाश्री नं॰ ४१

जिज्ञासु तत्व बोध विचार जिज्ञासु तत्व बोध विचार॥टेर॥

महा कारण से महतत्व प्रगटयो, माया गुण त्रय धार।
नभ वायु पावक जल पृथ्वी, पाँचो भूत निहार॥१॥

विषय पंच पचीस प्रकृति, चित मन बुद्वि अहंकार।
कर्म इन्द्रिय पंच कहीजे, पंच ही ज्ञान बिहार॥२॥

पंच ही प्राण उपप्राण पंच ही, चौदह लोक शुमार।
चौदहे देव अवस्था तीनों, पंच ही कोश भण्डार॥३॥

यह सब कल्पित है नहीं तुझ में, तू केवल निरधार।
जानन हारा सकल विश्व का, तुरिया अतीत अपार॥४॥

न्यारा सामिल सामिल न्यारा ज्यों लोह में हथियार।
श्री स्वामी दीप कहे मैं सो तू ही है, शुद्व स्वरुप निहार॥५॥