पद राग तिलंग काफी नं॰ ३९

कर दू तन मन धन कुरबान, सतगुरु स्वामी तुर्रे वाला।
हे सखी जनम सुफल भयो आज, दर्शन दिना हरि दीन दयाला॥टेर॥

प्रकटया तेज पुंज इकसार, जै जै विश्व विश्वाधार।
निर्गुण निर्मल निर्विकार ऐसा अजब उजाला॥१॥

भल हल कोटि भानु प्रकाश, तुरियातीत अजब अविनाश।
भई है भूल अविद्या नाश, मिट गया धुन्द का जाला॥२॥

अलौकिक हम स्वयं ज्योती, शिवोहं लिवोहं तुर्रे मोती।
अचल अनुपम मालूम होती, लागे मोहे बाला॥३॥

श्री गुरु देवपुरी भगवान, मेरा निज मन लीला मान।
दीना सत स्वरुप मोयदान, निज जान आपका बाला,
स्वामी दीप का देश निराला है॥४॥