पद राग तिलग नं॰ ३७

तुर्रा भलके ये सहेल्या, सतगुरु साहेब सारे शीश।
निगमागम पर भल हल भलके निज केवल जगदीश॥टेर॥

अन्तर तुर्रा बाहर तुर्रा तुर्रा है सब ईश।
तुर्रा तुर्रा स्वयं तुर्रा, तुर्रा है अब शीश॥१॥

हम में तुर्रा तुम में तुर्रा तुर्रा ही व्यापीश।
ऋषी-मुनि सब जपते तुर्रा, तुर्रा शेष रहीश॥२॥

श्री देवपुरी निर्गुण नारायण अभरा सर्व भरीस।
स्वामी दीप कहे धन्य दाता सत्यार्थ बख्शीश॥३॥