पद राग केरवा न॰ २४

हां हां जी मन मगन हमारो।
सत गुरु स्वामी रे ब्रह्मानन्द में॥टेर॥

सुख सागर की छोला लागे आनन्द अपरम्पार।
परम धाम में हंस हमारो झूले परमानन्द में रे॥१॥

जहा देखू जहा सुख ही सुख है नित्यानन्द भरपूर।
मुक्तानन्द स्वरुपानन्द में झलू पूर्णानन्द में रे॥२॥

अंतर बाहर अक्षय आनन्द वही चिदानन्द।
है स्वच्छन्दा सब सुख कन्दा है अटल आनन्द मेरे॥३॥

श्री देवपुरी पर ब्रह्म गुंसाई अचल अटल मन भंग।
श्री दीप कहे मम ऐसी वृती जैसी चकोरा चन्द में रे॥४॥